नोबेल शांति पुरस्कार की होड़ में ट्रंप! नेतनाओं ने अपनाया ‘नामांकन कूटनीति’वॉशिंगटन
नोबेल पाने की चाह में ट्रंप, नेताओं की चिट्ठियां बनीं राजनयिक हथियार

नई दिल्ली , 11 जुलाई 2025
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर से चर्चा के केंद्र में हैं, इस बार वजह है उनकी पुरानी ख्वाहिश—नोबेल शांति पुरस्कार। ट्रंप को यह प्रतिष्ठित सम्मान दिलाने की मुहिम अब अंतरराष्ट्रीय रंग पकड़ रही है, जहां विश्व के कई नेता और संगठन उन्हें नामित करने की दौड़ में शामिल हो गए हैं।
ट्रंप की ‘नोबेल ललक’ बनी वैश्विक चर्चा का विषय
डोनाल्ड ट्रंप लंबे समय से खुद को वैश्विक शांति का समर्थक बताते आए हैं। अब्राहम समझौते से लेकर भारत-पाक मध्यस्थता तक, उन्होंने कई मौकों पर दावा किया है कि उनके प्रयासों ने अंतरराष्ट्रीय तनाव को कम किया। यही वजह है कि अब उनके दूसरे कार्यकाल की संभावनाओं के बीच नोबेल पुरस्कार की चर्चा फिर ज़ोर पकड़ रही है।
नामांकन भेजकर संबंध सुधार रहे हैं नेता
दिलचस्प बात यह है कि सिर्फ अमेरिकी सांसद ही नहीं, बल्कि इजरायल से लेकर पाकिस्तान तक, यहां तक कि कुछ मूल अमेरिकी जनजातियों ने भी ट्रंप के पक्ष में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन भेजा है। जानकारों का कहना है कि यह पहल न केवल ट्रंप को खुश करने की कोशिश है, बल्कि राजनीतिक समीकरणों को भी ध्यान में रखते हुए की जा रही है।
ब्लू रूम में नेतन्याहू ने सौंपी चिट्ठी
इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू हाल ही में वॉशिंगटन दौरे पर थे, जहां उन्होंने ट्रंप से मुलाकात की। व्हाइट हाउस के ब्लू रूम में आयोजित रात्रिभोज के दौरान नेतन्याहू ने ट्रंप को नोबेल नामांकन की एक औपचारिक चिट्ठी सौंपी, जिसे उन्होंने नोबेल समिति को भेजा था।
इस मौके पर नेतन्याहू ने कहा, “मैंने नोबेल समिति को लिखा है कि आपके अब्राहम समझौते जैसे प्रयास वैश्विक शांति की दिशा में एक बड़ा कदम हैं। आप इस पुरस्कार के पूरे हकदार हैं।”
इस पर ट्रंप भावुक हो गए और कहा, “यह मेरे लिए बहुत बड़ा सम्मान है, मैं इसे कभी नहीं भूलूंगा।”
आलोचकों की नजर में ट्रंप ‘विवादित’ नेता
हालांकि उनके समर्थक उन्हें शांति का प्रतीक बता रहे हैं, लेकिन आलोचक इस नामांकन अभियान पर सवाल उठा रहे हैं। उनका मानना है कि ट्रंप की नीतियां, खासकर आप्रवास, मुस्लिम देशों पर प्रतिबंध और घरेलू स्तर पर उथल-पुथल, उन्हें इस पुरस्कार के लिए अनुपयुक्त बनाती हैं।
नोबेल समिति भी किसी भी नामांकित व्यक्ति के कार्यों की निष्पक्ष समीक्षा करती है, और ट्रंप का ध्रुवीकरण करने वाला राजनीतिक इतिहास इस राह में सबसे बड़ी रुकावट बन सकता है।
क्या ट्रंप को मिलेगा नोबेल?
अब सवाल यह है कि क्या अंतरराष्ट्रीय नेताओं की यह मुहिम और ट्रंप के कूटनीतिक दावे उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार दिला पाएंगे? या फिर यह केवल एक राजनीतिक हथकंडा बनकर ही रह जाएगा, जो ट्रंप की लोकप्रियता को चुनाव से पहले हवा देने के लिए शुरू किया गया है?