कैसे कांग्रेस ने कच्चाथीवू को श्रीलंका को दे दिया: पूरा मामला और इस द्वीप का श्रीलंका के पास जाना
01 अप्रैल 2024 ,नई दिल्ली
कच्चाथीवू द्वीप मुद्दा अब तमिलनाडु की राजनीति से निकलकर राष्ट्रीय स्तर पर एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुका है। 1974 में इंदिरा गांधी सरकार ने कच्चाथीवू द्वीप को श्रीलंका के साथ एक समझौता किया था, जिसके अनुसार सरकार ने इसे श्रीलंका के हिस्से में माना था।
पीएम मोदी ने कांग्रेस को घेरा
एक रिपोर्ट के अनुसार, पीएम मोदी ने कांग्रेस को इस मामले में घेरा है। उन्होंने रिपोर्ट को साझा करते हुए कहा है कि यह “आंखें खोलने वाली और चौंकाने वाली” है। इससे पता चलता है कि कैसे कांग्रेस ने कच्चाथीवू को श्रीलंका को सौंप दिया। इससे सभी भारतीय नाराज हैं और लोगों के मन में कांग्रेस के खिलाफ गुस्सा है। पीएम ने कहा कि अब सभी को पता चल गया है कि हम कभी भी कांग्रेस पर भरोसा नहीं कर सकते।
दक्षिणी राज्यों में पैठ बढ़ाने की कोशिश
भाजपा इस मुद्दे को दक्षिणी राज्यों में अपनी राजनीतिक प्रवृत्ति को बढ़ाने के लिए सहारा बनाने का प्रयास कर रही है। पीएम ने कच्चाथीवू द्वीप के मामले में डीएमके तक को आड़े हाथ लिया है। उन्होंने कहा कि इस द्वीप को श्रीलंका को देने में डीएमके का भी हाथ है।
यह है पूरा मामला
यह रिपोर्ट उस आरटीआई के साथ सामने आई है, जिसमें बताया गया है कि 1974 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने इस द्वीप को कैसे श्रीलंका को सौंपा था। पीएम ने इस पर कहा कि भारत की एकता और अखंडता को कमजोर करना ही कांग्रेस का 75 साल से काम करने का तरीका रहा है।
कच्चाथीवू द्वीप का स्थान
कच्चाथीवू द्वीप हिंद महासागर के दक्षिणी छोर पर स्थित है। यह रामेश्वरम और श्रीलंका के बीच में है और 285 एकड़ में फैला हुआ है। यहां ज्वालामुखी विस्फोट भी होते हैं, इसलिए यहां कोई निवास नहीं है। इसे आजादी से पहले भारत के अधीन रखा गया था, लेकिन श्रीलंका ने इस पर भी अपना दावा किया था।
भारत ने क्यों दिया इसे श्रीलंका को कच्चाथीवू द्वीप
द्वीप को लेकर भारत और श्रीलंका के बीच विवाद था। 1974 में इसे कम करने के लिए भारत और श्रीलंका ने कोलंबो और दिल्ली में दो बैठकें की थीं। उन बैठकों में भारत ने द्वीप को अपना बताया और इसके साथ साबित करने के लिए सबूत भी प्रस्तुत किए थे, लेकिन तत्कालीन भारतीय विदेश सचिव ने श्रीलंका के दावे को भी मजबूत माना था। इसके बाद इंदिरा गांधी ने इसे श्रीलंका को भेंट के रूप में सौंप दिया।
दोनों देशों में समझौता
इस द्वीप को श्रीलंका को सौंपने से पहले दोनों देशों में समझौता हुआ था। इसके तहत भारतीय मछुआरे यहां अपने जाल सुखा सकते हैं और भारतीय नागरिकों को वहां जाने के लिए किसी वीजा की आवश्यकता नहीं होगी। इस द्वीप का मामला तमिलनाडु की राजनीति में भी कई बार उठा है और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है।
हंगामा क्यों हो रहा है?
भारतीय मछुआरों कई बार अंतरराष्ट्रीय सीमा पर काम करते हुए श्रीलंका की सीमा में दाखिल हो जाते हैं। श्रीलंका सरकार उनपर कार्रवाई करते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लेती है। उनके नौकों को भी जब्त किया जाता है, जिससे मछुआरों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।