थांग-टा के राष्ट्रीय चैंपियन बिहार के शिवांग: परिवार, मेहनत और सपनों की जीत

थांग-टा के राष्ट्रीय चैंपियन बिहार के शिवांग: परिवार, मेहनत और सपनों की जीत

मरांची, पटना (बिहार)

बिहार के छोटे से गाँव मरांची (पटना) के शिवांग कृष्णम ने अपनी मेहनत और समर्पण से राष्ट्रीय स्तर पर नाम रोशन किया है। उन्होंने XXIXवीं राष्ट्रीय थांग-टा चैंपियनशिप में रजत पदक जीतकर न केवल अपने परिवार का बल्कि पूरे बिहार का गौरव बढ़ाया है। कल उन्हें बिहार सरकार द्वारा ‘बिहार राज्य खेल सम्मान’ से पटना के ज्ञान भवन में सम्मानित किया गया। खेल विभाग द्वारा आयोजित इस समारोह में उन्हें स्मृति चिन्ह और ₹1.5 लाख का चेक प्रदान किया गया। यह सम्मान रविंद्रन शंकरण, खेल डीजी, प्रो. श्रीजेश (पेरिस ओलंपिक हॉकी खिलाड़ी और कांस्य पदक विजेता), और बिहार के खेल मंत्री ने संयुक्त रूप से दिया।

शिवांग की यह सफलता सिर्फ उनकी व्यक्तिगत मेहनत की कहानी नहीं है, बल्कि उनके माता-पिता और कोच की कड़ी मेहनत और त्याग का भी प्रतीक है। बिहार के एक छोटे गाँव से राष्ट्रीय स्तर तक का सफर उनकी दृढ़ता और अटूट समर्पण का साक्षी है।

थांग-टा एक पारंपरिक मार्शल आर्ट है जिसमें हथियारबंद और बिना हथियार के लड़ाई की तकनीकें सिखाई जाती हैं। यह खेल शक्ति, गति और अनुशासन का प्रतीक है, जो शिवांग के जीवन में हमेशा से मौजूद रहे हैं। इसी कला में निपुणता हासिल कर शिवांग राष्ट्रीय स्तर के चैंपियन बने हैं।

शिवांग के खेल के प्रति इस जुनून को उनके परिवार ने हमेशा बढ़ावा दिया। उनके पिता, जो एक साधारण किसान हैं, और उनकी माँ, जिन्होंने अपने बेटे की काबिलियत पर हमेशा विश्वास किया, ने अपनी सीमित साधनों के बावजूद उन्हें हरसंभव समर्थन दिया। इस बारे में शिवांग ने कहा, “मेरे माता-पिता का विश्वास ही मेरी सफलता का आधार है। उनके त्याग और माँ की निरंतर प्रोत्साहना ने मुझे मेरा सपना पूरा करने की ताकत दी।”

शिवांग के लिए उनके नाना, जो पटना के बाढ़ से ताल्लुक रखते थे और राज्य स्तर के बैडमिंटन खिलाड़ी थे, एक बड़ा प्रेरणास्रोत रहे। उनके नाना ने कभी दिग्गज शटलर सैयद मोदी के खिलाफ भी खेला था। शिवांग ने अपने नाना और दादा से गहरा लगाव महसूस किया और उन दोनो को मृत्यु दो साल पहले हो गई। “मेरे नाना और बाबा मेरे हीरो थे,” शिवांग ने कहा। “खेल के प्रति नाना का जुनून ही मेरे जीवन में खेल की शुरुआत का कारण बना। मैंने उनके मैचों की कहानियाँ सुनते हुए खेल के प्रति अपने सपने को साकार किया। आज का यह सम्मान मैं उन्हें समर्पित करता हूँ।”

शिवांग के कोच ने उनके जीवन में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने कहा, “मेरे कोच मेरे मार्गदर्शक और मेरे लिए पिता समान हैं। उनके धैर्य, अनुशासन और अटूट समर्थन ने मुझे अपनी सीमाओं से परे जाने की प्रेरणा दी।”

आगे का सपना शिवांग का यह है कि वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करें और एक दिन देश के लिए स्वर्ण पदक जीतें। अपने परिवार के समर्थन, कोच के मार्गदर्शन, और अपने नाना के आशीर्वाद से वह इस सफर को और आगे ले जाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

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