बिहार की बेटी, लोक संगीत की आवाज़: छठ के दौरान शारदा सिन्हा का निधन

बिहार की बेटी, लोक संगीत की आवाज़: छठ के दौरान शारदा सिन्हा का निधन

“उग हो सुरुज देव” से “कहे तोसे सजना” तक: शारदा सिन्हा का योगदान अमर रहेगा

06 नवंबर 2024 , नई दिल्ली

शारदा सिन्हा का नाम ज़हन में आते ही छठ पर्व के गीतों की मधुर गूंज मन में बस जाती है। बिहार की इस बेटी ने छठ के गीतों को कुछ इस तरह गाया कि इस पर्व के बिना उनके गाने अधूरे से लगते हैं। “ए करेलु छठ बरतिया से झांके झुके हो”, “केलवा के पात पर उगेलन सुरुज मल झांके झुके” या “कांचे ही बांस के बहंगिया”—इन गीतों को गाकर शारदा सिन्हा ने छठ महापर्व को अमर कर दिया है।

पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित

लोकसंगीत की इस महान गायिका को भारत सरकार ने पद्म श्री और पद्म भूषण से नवाज़ा था। स्वर कोकिला कही जाने वाली शारदा सिन्हा ने छठ के दौरान ही इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनकी आवाज़, जो मैथिली और भोजपुरी लोकसंगीत को समर्पित रही, कभी भुलाई नहीं जा सकेगी। जब-जब छठ के गीत गूंजेंगे, तब-तब बिहार की यह अनमोल बेटी यादों में जीवित रहेगी। छठ जैसा धार्मिक पर्व उनके बिना अधूरा सा महसूस होता रहेगा।

50 साल पहले गाया पहला गीत

शारदा सिन्हा ने लगभग 50 साल पहले, 1974 में अपना पहला भोजपुरी गाना गाया था। उनके इस सफर में कड़ी मेहनत और संघर्ष भी शामिल रहा। फिर 1978 में उन्होंने छठ गीत “उग हो सुरुज देव” गाया, जिसने लोकप्रियता के नए कीर्तिमान स्थापित किए। इस गीत के बाद से शारदा सिन्हा और छठ पर्व एक-दूसरे के पूरक बन गए। आज भी यह गीत छठ घाटों पर श्रद्धापूर्वक सुना जाता है। 1989 में, उन्होंने बॉलीवुड में कदम रखा और “मैने प्यार किया” फिल्म के लिए “कहे तोसे सजना” गीत गाया, जो आज भी लोकप्रिय है।

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सुपौल से मुंबई तक का सफर

बिहार के सुपौल जिले के एक छोटे से गाँव हुलास में जन्मी शारदा सिन्हा ने 1 अक्टूबर 1952 को इस दुनिया में कदम रखा। उनके पिता, सुखदेव ठाकुर, हाई स्कूल के प्रिंसिपल थे। शारदा सिन्हा ने अपनी शुरुआती शिक्षा अपने गाँव से ही पूरी की और उसके बाद संगीत में अपना करियर बनाने के लिए संघर्षरत रहीं। कई वर्षों की कठिन मेहनत के बाद, “उग हो सुरुज मल” जैसे गीत ने उन्हें बिहार की आवाज़ बना दिया। संयोगवश, जिन छठ गीतों ने उन्हें विश्वप्रसिद्ध किया, उसी पर्व के दौरान वे इस दुनिया से विदा हो गईं।

संगीत जगत के लिए अपूरणीय क्षति

शारदा सिन्हा के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह तक ने शोक जताया। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि शारदा सिन्हा की आवाज़ में गाए मैथिली और भोजपुरी गीत पिछले कई दशकों से अत्यधिक लोकप्रिय रहे हैं। उनका जाना संगीत जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। 72 वर्षीय शारदा सिन्हा ने न केवल मैथिली और भोजपुरी, बल्कि हिंदी फिल्मों में भी अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा। “गैंग्स ऑफ वासेपुर” का “तार बिजली से पतले हमारे पिया” हो या “हम आपके हैं कौन” का “बाबुल”, शारदा सिन्हा ने हर तरह के गानों में अपने अनूठे अंदाज से पहचान बनाई।

शारदा सिन्हा ने न सिर्फ लोकसंगीत की दुनिया को समृद्ध किया, बल्कि भारतीय संगीत को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उनका संगीत और उनकी आवाज़ सदा के लिए हमारे दिलों में बस गई है।

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