भारत में टीबी: एक बड़ी स्वास्थ्य चुनौती
04 दिसंबर 2024 , नई दिल्ली
ट्यूबरकुलोसिस (टीबी) भारत में पिछले कई दशकों से गंभीर स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है। लाखों लोग हर साल इस बीमारी से जूझते हैं और हजारों अपनी जान गंवा बैठते हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, टीबी के सबसे ज्यादा मरीज भारत में हैं। सरकारें लंबे समय से टीबी मुक्त भारत बनाने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन अभी भी यह समस्या जस की तस बनी हुई है।
टीबी के बढ़ते मामले
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने राज्यसभा में जानकारी दी कि 2020 में टीबी के 18.05 लाख मामले सामने आए थे। यह संख्या 2023 में बढ़कर 25.52 लाख हो गई। 2024 के जनवरी से अक्टूबर के बीच 21.69 लाख मामले रिकॉर्ड किए गए हैं। सरकार का लक्ष्य 2025 तक टीबी को खत्म करना है, जो कि वैश्विक लक्ष्य से पांच साल पहले है। हालांकि, विशेषज्ञ मानते हैं कि मौजूदा हालात में यह लक्ष्य हासिल करना मुश्किल है।
टीबी कैसे होती है?
नई दिल्ली के साकेत स्थित मंत्री रेस्पिरेटरी क्लिनिक के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. भगवान मंत्री के अनुसार, टीबी मायोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक बैक्टीरिया से होती है। यह बैक्टीरिया वातावरण में मौजूद रहता है और करीब 90% लोगों के शरीर में पहले से मौजूद होता है। जब तक व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) मजबूत रहती है, तब तक यह बैक्टीरिया सक्रिय नहीं होता। लेकिन इम्यूनिटी कमजोर होते ही यह शरीर पर हमला कर देता है और टीबी की बीमारी पैदा करता है।
टीबी शरीर के किसी भी अंग में हो सकती है, लेकिन सबसे ज्यादा मामले फेफड़ों की टीबी (पल्मोनरी टीबी) के होते हैं।
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टीबी का इलाज
टीबी का पता लगाना और इलाज शुरू करना बेहद जरूरी है। फेफड़ों की टीबी का निदान आसान है और इसके लिए कई तरह के टेस्ट उपलब्ध हैं। लेकिन शरीर के अन्य हिस्सों में हुई टीबी को पहचानना मुश्किल हो सकता है।
टीबी के इलाज में आमतौर पर 6 से 9 महीने तक एंटीबायोटिक्स लेने की जरूरत होती है। अगर बीमारी का पता शुरुआती चरण में चल जाए, तो इसे पूरी तरह ठीक किया जा सकता है। लेकिन इलाज में देरी जानलेवा हो सकती है।
डॉ. भगवान मंत्री के मुताबिक, अगर किसी व्यक्ति को लंबे समय तक खांसी, बुखार या अन्य असामान्य लक्षण महसूस हों, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। अगर सामान्य दवाओं से राहत न मिले, तो पल्मोनोलॉजिस्ट से परामर्श लेना आवश्यक है।
टीबी खत्म करने में बाधाएं
भारत में टीबी खत्म न होने की एक बड़ी वजह मल्टीड्रग-रेसिस्टेंट टीबी (एमडीआर-टीबी) है। इसमें सामान्य इलाज काम नहीं करता और विशेष दवाइयों की जरूरत होती है। इसके अलावा, सही समय पर निदान और इलाज की कमी, साथ ही लोगों की लापरवाही, टीबी के बढ़ते मामलों का बड़ा कारण हैं।
क्या हो सकता है समाधान?
टीबी मुक्त भारत बनाने के लिए जरूरत है:
- सचेतना अभियान चलाने की, जिससे लोग बीमारी के लक्षण पहचान सकें।
- टीबी के शुरुआती निदान और इलाज की सुविधाओं को मजबूत करने की।
- मल्टीड्रग-रेसिस्टेंट टीबी के इलाज के लिए बेहतर और किफायती दवाएं उपलब्ध कराने की।
- लोगों को नियमित इलाज के लिए प्रेरित करने की।
निष्कर्ष
टीबी से लड़ाई एक लंबी और कठिन यात्रा है। भारत को टीबी मुक्त बनाने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी प्रयासों को और तेज करने की जरूरत है। समय पर निदान और सही इलाज ही इस घातक बीमारी पर जीत पाने का एकमात्र तरीका है।