अमित शाह पर आंबेडकर का ‘अपमान’ करने का आरोप: क्या वाकई ‘भाजपा के पूर्वजों’ ने बाबासाहेब का पुतला जलाया, जैसा कि जयराम रमेश ने कहा?

अमित शाह पर आंबेडकर का ‘अपमान’ करने का आरोप: क्या वाकई ‘भाजपा के पूर्वजों’ ने बाबासाहेब का पुतला जलाया, जैसा कि जयराम रमेश ने कहा?

अमित शाह का आंबेडकर पर बयान: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के बीच बाबासाहेब आंबेडकर की विरासत को लेकर चल रही बहस के बीच, यह देखना महत्वपूर्ण है कि आरएसएस और सावरकर ने आंबेडकर और संविधान को लेकर क्या कहा था।

संसद में अमित शाह के बयान पर हंगामा

18 दिसंबर को संसद में हंगामा तब हुआ, जब विपक्ष ने गृह मंत्री अमित शाह पर डॉ. बीआर आंबेडकर का अपमान करने का आरोप लगाया और भाजपा ने उनका बचाव करने की कोशिश की।

अमित शाह ने राज्यसभा में कहा, “आजकल आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर कहना एक फैशन बन गया है। अगर लोग भगवान का नाम इतनी बार लेते, तो उन्हें स्वर्ग में जगह मिल जाती।” शाह ने यह भी कहा कि आंबेडकर ने नेहरू के मंत्रिमंडल से इसलिए इस्तीफा दिया था क्योंकि उन्हें “अनदेखा” किया गया और वे “असंतुष्ट” थे।

कांग्रेस का पलटवार

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने प्रतिक्रिया में ट्वीट किया, “…यह दिखाता है कि भाजपा और आरएसएस के नेताओं के मन में बाबा साहेब आंबेडकर के लिए बहुत नफरत है। उनकी नफरत इतनी है कि उन्हें उनका नाम सुनने में भी चिढ़ होती है। ये वही लोग हैं जिनके पूर्वजों ने बाबा साहेब का पुतला जलाया और उनके बनाए संविधान को बदलने की बात की।”

क्या आंबेडकर का पुतला जलाया गया था?

12 दिसंबर 1949 को आरएसएस कार्यकर्ताओं ने डॉ. आंबेडकर और जवाहरलाल नेहरू के पुतले जलाए थे। उस समय आरएसएस हिंदू कोड बिल का घोर विरोध कर रहा था। यह बिल विवाह और उत्तराधिकार जैसे विषयों में सुधार कर महिलाओं को अधिक अधिकार देने का प्रयास कर रहा था।

इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी पुस्तक इंडिया आफ्टर गांधी में लिखा है, “11 दिसंबर 1949 को आरएसएस ने दिल्ली के रामलीला मैदान में एक सार्वजनिक सभा आयोजित की, जहां वक्ताओं ने हिंदू कोड बिल की आलोचना की। एक वक्ता ने इसे ‘हिंदू समाज पर परमाणु बम’ कहा। अगले दिन आरएसएस कार्यकर्ताओं ने विधानसभा भवन के बाहर प्रदर्शन किया, ‘डाउन विद हिंदू कोड बिल’ और ‘नेहरू मुर्दाबाद’ के नारे लगाए। उन्होंने नेहरू और आंबेडकर के पुतले जलाए और शेख अब्दुल्ला की गाड़ी को तोड़ दिया।”

आरएसएस, गोलवलकर और सावरकर ने संविधान पर क्या कहा?

डॉ. आंबेडकर ने कानून मंत्री के रूप में हिंदू कोड बिल को पारित कराने में हो रही देरी और विरोध से निराश होकर इस्तीफा दे दिया था। खास बात यह है कि इस बिल का विरोध केवल कांग्रेस के कुछ गुटों ने ही नहीं, बल्कि दक्षिणपंथी संगठनों ने भी किया।

आंबेडकर ने हिंदू कोड बिल के बारे में कहा था, “वर्ग और वर्ग, और लिंग और लिंग के बीच असमानता को बनाए रखते हुए आर्थिक समस्याओं से संबंधित कानून पास करना संविधान का मजाक उड़ाने जैसा है। यह एक महल को कूड़े के ढेर पर बनाने जैसा है।”

रामचंद्र गुहा ने द इंडियन एक्सप्रेस में लिखा कि आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर ने 2 नवंबर 1949 के अंक में हिंदू कोड बिल का विरोध करते हुए इसे “हिंदू विश्वास पर सीधा हमला” कहा था। 7 दिसंबर 1949 को प्रकाशित संपादकीय में लिखा गया, “हम हिंदू कोड बिल का विरोध करते हैं क्योंकि यह विदेशी और अनैतिक सिद्धांतों पर आधारित है।”

आरएसएस के तत्कालीन सरसंघचालक एमएस गोलवलकर ने भी संविधान की आलोचना की थी। अपनी पुस्तक बंच ऑफ थॉट्स में उन्होंने लिखा, “हमारा संविधान पश्चिमी देशों के विभिन्न संविधान के लेखों को जोड़कर बनाया गया एक बोझिल और असंगत दस्तावेज है। इसमें हमारा कुछ भी मौलिक नहीं है।”

वीडी सावरकर ने भी इसी तरह की बातें कही थीं। उन्होंने वीमेन इन मनुस्मृति में लिखा, “भारत के नए संविधान में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे भारतीय कहा जा सके… मनुस्मृति हमारे हिंदू राष्ट्र की वह पुस्तक है जो वेदों के बाद सबसे पूजनीय है। यह हमारी संस्कृति, रीति-रिवाजों और विचारों का आधार है।”

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देश पॉलिटिक्स