सूर्य देव के मकर राशि में प्रवेश के साथ मनाएं मकर संक्रांति, जानें इस पर्व का महत्व।

सूर्य देव के मकर राशि में प्रवेश के साथ मनाएं मकर संक्रांति, जानें इस पर्व का महत्व।

मकर संक्रांति 2025: जानें तिथि, समय और महत्व का हर पहलू

21 दिसंबर 2024 , नई दिल्ली

नए साल की शुरुआत के साथ ही मकर संक्रांति का पावन पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। हिंदू धर्म में इस त्योहार का विशेष महत्व है। सालभर में 12 संक्रांतियां होती हैं, लेकिन मकर संक्रांति का महत्व सबसे अधिक है। यह त्योहार तब मनाया जाता है जब सूर्य धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करता है। देशभर में यह पर्व अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है, लेकिन इसकी भावना हर जगह समान होती है।

मकर संक्रांति 2025 कब है?


वैदिक पंचांग के अनुसार, वर्ष 2025 में मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी, मंगलवार को मनाया जाएगा। इस दिन सूर्य देव सुबह 9:03 बजे धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेंगे।

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सूर्य देव के मकर राशि में प्रवेश के साथ मनाएं मकर संक्रांति, जानें इस पर्व का महत्व।

मकर संक्रांति 2025 का स्नान और दान का शुभ मुहूर्त


हिंदू पंचांग के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन स्नान और दान के लिए शुभ समय सुबह 9:03 बजे से शाम 5:46 बजे तक रहेगा। इस पुण्य काल की कुल अवधि 8 घंटे 42 मिनट की होगी। इसके अलावा, महा पुण्य काल सुबह 9:03 बजे से शुरू होकर 10:48 बजे तक रहेगा, जिसकी अवधि 1 घंटा 45 मिनट की होगी। इन शुभ समयों में गंगा स्नान और दान करना विशेष फलदायी माना जाता है।

मकर संक्रांति का महत्व


मकर संक्रांति का पर्व सूर्य देव की उपासना और नई फसल के आगमन का प्रतीक है। इस दिन किसान अपनी नई फसल के लिए ईश्वर का धन्यवाद करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पवित्र नदियों में स्नान और दान करने से जीवन में पुण्य की प्राप्ति होती है।

महाभारत के अनुसार, भीष्म पितामह ने बाणों की शैय्या पर लेटे हुए मकर संक्रांति का इंतजार किया था और इसी दिन अपने प्राण त्यागे थे। गीता में भी कहा गया है कि उत्तरायण के छह महीने में शुक्ल पक्ष की तिथि पर देह त्याग करने वाला व्यक्ति जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करता है।

पर्व की अनोखी विशेषताएं


मकर संक्रांति न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। यह पर्व देशभर में विभिन्न नामों से जाना जाता है जैसे पंजाब में लोहड़ी, तमिलनाडु में पोंगल, असम में माघ बिहू, और गुजरात में उत्तरायण। हर क्षेत्र में इस त्योहार का खास तरीका और उत्साह देखने को मिलता है।

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