अमित शाह की बिहार यात्रा: नीतीश की नाराजगी पर सस्पेंस खत्म होगा?
04 जनवरी 2025, नई दिल्ली
बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार की कथित नाराजगी इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है। एनडीए में बने रहने के उनके बयानों के बावजूद, सियासी हलकों में उनकी मंशा पर संदेह बरकरार है। यह संदेह उनके अतीत के फैसलों और वर्तमान परिस्थितियों से उपजा है। जो नेता भाजपा के साथ मरते दम तक रहने की बात करते थे, वही आज भाजपा से नाराजगी की खबरों का केंद्र बने हुए हैं। सवाल यह है कि अगर नाराजगी सच है, तो वे एनडीए के साथ रहने की बात बार-बार क्यों कह रहे हैं? और अगर यह महज अफवाह है, तो ऐसी खबरों को हवा कौन दे रहा है?
भाजपा का भरोसेमंद साथ
नीतीश कुमार और भाजपा का साथ 1990 के दशक में समता पार्टी के समय से है। नीतीश को पहली बार मुख्यमंत्री बनने में भाजपा का समर्थन मिला और यह साथ आज तक जारी है। 2020 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने अपने 74 विधायकों के बावजूद नीतीश को मुख्यमंत्री बनाया, जबकि जेडीयू के पास केवल 43 विधायक थे। यह भाजपा का गठबंधन धर्म निभाने का स्पष्ट प्रमाण था। बावजूद इसके, नीतीश कुमार का दो बार आरजेडी के साथ जाना और फिर भाजपा की ओर लौट आना उनकी राजनीतिक विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करता है।
आरजेडी के साथ रहना मुश्किल क्यों हुआ?
नीतीश कुमार 2022 में आरजेडी के साथ गए, लेकिन वहां उनके लिए परिस्थितियां अनुकूल नहीं रहीं। तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने का दबाव, सीटों के बंटवारे पर खींचतान, और लालू यादव की महत्वाकांक्षाएं उनके लिए परेशानी का सबब बन गईं। मजबूर होकर उन्हें नालंदा में यह ऐलान करना पड़ा कि 2025 का चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। हालांकि, आरजेडी के भीतर उनके खिलाफ शुरू हुई उपेक्षा और लगातार दबाव ने नीतीश को यह एहसास कराया कि भाजपा के साथ रहने में राजनीतिक स्थिरता है।
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इंडिया ब्लॉक: लालू का खेल या नीतीश की पहल?
नीतीश कुमार ने विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन यह पहल लालू यादव के दबाव का नतीजा थी। लालू, तेजस्वी को बिहार की राजनीति में स्थापित करने के लिए नीतीश को राष्ट्रीय राजनीति में भेजना चाहते थे। सोनिया गांधी से मुलाकात और विपक्षी नेताओं के साथ बैठकों के बाद भी नीतीश को ब्लॉक के संयोजक का पद नहीं मिला। इस अपमान और आरजेडी के भीतर उपेक्षा ने नीतीश को दोबारा भाजपा का दामन थामने पर मजबूर कर दिया।
नीतीश की नाराजगी की वजहें: हकीकत या अटकलें?
नीतीश कुमार की कथित नाराजगी का कारण भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व का रुख बताया जा रहा है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के हालिया बयान में यह स्पष्ट किया गया कि बिहार में मुख्यमंत्री का फैसला भाजपा का संसदीय बोर्ड करेगा। यह बयान नीतीश के लिए अप्रत्याशित नहीं था, लेकिन इसे लेकर मीडिया में उनके असंतोष की खबरें तूल पकड़ने लगीं।
अमित शाह के दौरे से स्थिति होगी साफ
अमित शाह 5 जनवरी को दो दिवसीय बिहार दौरे पर आ रहे हैं। इस दौरान वे सुशील कुमार मोदी की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम और गुरुद्वारा साहिब में शामिल होंगे। पार्टी नेताओं के साथ बैठकों के अलावा, शाह संभवतः नीतीश से भी मुलाकात कर सकते हैं। यदि ऐसा होता है, तो नीतीश की नाराजगी की असलियत पर से पर्दा उठ सकता है।
सियासत का खेल जारी
नीतीश कुमार राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं। उनकी चालें न केवल बिहार की राजनीति को प्रभावित करती हैं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी चर्चा का विषय बनती हैं। आने वाले 48 घंटे यह तय करेंगे कि उनकी नाराजगी असली है या महज एक सियासी अफवाह। जो भी हो, इस घटनाक्रम ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है और सभी की निगाहें नीतीश और भाजपा के संबंधों पर टिक गई हैं।
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