महाबोधि महाविहार पर बौद्धों का हक – आंदोलन तेज, 12 फरवरी से भूख हड़ताल

महाबोधि महाविहार पर बौद्धों का हक – आंदोलन तेज, 12 फरवरी से भूख हड़ताल

बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 के चलते अब भी गैर-बौद्ध प्रबंधन का नियंत्रण

बौद्ध नेताओं का आरोप – यह धार्मिक अधिकारों का हनन और बुद्ध के सिद्धांतों के विरुद्ध

12 फरवरी से राष्ट्रव्यापी आंदोलन और अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल की घोषणा

नई दिल्ली, ऑल इंडिया बौद्ध फोरम और कई बौद्ध संगठनों ने करोल बाग स्थित डॉ. अंबेडकर भवन में प्रेस वार्ता कर बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 को खत्म करने और महाबोधि महाविहार का संपूर्ण नियंत्रण बौद्ध समुदाय को सौंपने की मांग दोहराई। यह आंदोलन लंबे समय से जारी है, लेकिन अब इसे और तेज किया जाएगा।

फोरम के महासचिव आकाश लामा ने कहा कि बोधगया, जो वैश्विक बौद्धों के लिए सबसे पवित्र स्थल है, आज भी गैर-बौद्ध प्रशासन के अधीन है, जो सरासर अन्याय है। उन्होंने मौजूदा प्रबंधन पर अंधविश्वास को बढ़ावा देने और इस पवित्र स्थल के व्यावसायीकरण का आरोप लगाया, जो बुद्ध के वैज्ञानिक और तर्कसंगत विचारों के खिलाफ है।

उन्होंने कहा:
“दुनियाभर से बौद्ध महाबोधि महाविहार में दर्शन के लिए आते हैं, लेकिन इसके प्रशासन में बौद्धों की कोई भागीदारी नहीं है। बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 ने हमें हमारे ही पवित्र स्थल से वंचित कर दिया है। अब समय आ गया है कि इस अन्याय को खत्म किया जाए। हमारी मांग है कि इस अधिनियम को पूरी तरह रद्द कर महाबोधि महाविहार का संपूर्ण नियंत्रण बौद्ध समुदाय को सौंपा जाए।”

26 नवंबर 2023 और 17 सितंबर 2024 से जारी आंदोलन को और बड़ा रूप मिलेगा

ऑल इंडिया बौद्ध फोरम ने 26 नवंबर 2023 और 17 सितंबर 2024 को हस्ताक्षर अभियान चलाया था और 500 से अधिक ज्ञापन प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री, गृह मंत्री, केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री, बिहार के राज्यपाल और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को सौंपे थे। अब इस आंदोलन को और तेज करने के लिए 12 फरवरी 2025 (माघ पूर्णिमा) से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू की जाएगी

बौद्ध नेताओं की चेतावनी – अब और इंतजार नहीं

इस मांग का समर्थन करते हुए डॉ. हरबंस वीरदी (अंतरराष्ट्रीय समन्वयक, फेडरेशन ऑफ अंबेडकराइट्स एंड बौद्ध ऑर्गेनाइजेशन्स, यूके) और ऑल इंडिया बौद्ध फोरम के मुख्य सलाहकार ने कहा:

“महाबोधि महाविहार पर बौद्ध नियंत्रण की यह लड़ाई सौ वर्षों से अधिक पुरानी है। 19वीं शताब्दी में अनागारिक धर्मपाल ने इस मुद्दे के लिए संघर्ष किया था, लेकिन आज भी मंदिर प्रशासन बौद्धों के हाथ में नहीं है। भारत सरकार को इस ऐतिहासिक अन्याय को तुरंत सुधारना चाहिए।”

बौद्धों

बौद्ध विरासत की पवित्रता सिर्फ बौद्ध प्रबंधन में संभव

भिक्षु रत्नदीपा (महासचिव, अरुणाचल प्रदेश भिक्षु संघ और मुख्य सलाहकार, ऑल इंडिया बौद्ध फोरम) ने कहा:

“महाबोधि महाविहार बौद्ध धरोहर का प्रतीक है, इसकी आध्यात्मिक गरिमा और पवित्रता बनाए रखने का अधिकार केवल बौद्ध समुदाय को होना चाहिए। भारत सरकार को चाहिए कि वह इस स्थल का प्रबंधन बौद्धों को सौंपे।”

भंते प्रज्ञशील महाथेरो (मुख्य सलाहकार, ऑल इंडिया बौद्ध फोरम) ने भी एकजुटता दिखाते हुए बिहार सरकार और भारत सरकार से बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 को खत्म करने और महाबोधि महाविहार को बौद्धों को सौंपने की अपील की।

चंद्रबोधि पाटिल (राष्ट्रीय अध्यक्ष, बौद्ध सोसाइटी ऑफ इंडिया) और डॉ. विलास खरत प्रज्ञशील ने भी सरकार से इस विषय पर तुरंत हस्तक्षेप करने की मांग की।

ऐतिहासिक अन्याय को खत्म करने का समय आ गया

बिहार सरकार द्वारा लागू बोधगया मंदिर अधिनियम, 1949 के तहत महाबोधि मंदिर प्रबंधन समिति में नौ सदस्य होते हैं, जिनमें गैर-बौद्ध भी शामिल किए जाते हैं, और समिति का अध्यक्ष गैर-बौद्ध ही होता है। बौद्ध नेताओं का कहना है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन और बौद्ध विरासत का अपमान है

डॉ. प्रो. विलास खरत, डॉ. एच.एल. बिर्डी, चंद्रबोधि पाटिल और डॉ. राहुल बाली ने आंदोलन को और तेज करने का संकल्प लिया। साथ ही, दिल्ली कार्यकारिणी समिति का गठन किया गया, जिसमें वरिष्ठ बौद्ध भिक्षु और कार्यकर्ता शामिल हैं

राष्ट्रव्यापी समर्थन की अपील

आकाश लामा ने सभी बौद्ध अनुयायियों, अंबेडकरवादी संगठनों और तर्कशील समूहों से एकजुट होकर 12 फरवरी से शुरू होने वाली भूख हड़ताल में भाग लेने की अपील की। उन्होंने कहा:

“यह सिर्फ एक मंदिर का मामला नहीं है, यह बौद्ध पहचान, गरिमा और न्याय का सवाल है। हम सभी बुद्ध अनुयायियों और न्यायप्रिय लोगों से इस ऐतिहासिक आंदोलन में हमारा साथ देने की अपील करते हैं।”

ऑल इंडिया बौद्ध फोरम ने भारत सरकार से इस अन्याय को तुरंत समाप्त करने और महाबोधि महाविहार का संपूर्ण नियंत्रण बौद्ध समुदाय को सौंपने की अपील की है।

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