नई दिल्ली, 26 फरबरी 2025
आज महाशिवरात्रि का पावन पर्व है, जो भगवान शिव और माता पार्वती के दिव्य मिलन का प्रतीक है। सनातन धर्म में इस दिन का विशेष महत्व है, जब भक्त उपवास रखते हैं, भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करते हैं और उन्हें प्रिय वस्तुओं का भोग लगाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। इस वर्ष, यह शुभ दिन आज, 26 फरवरी 2025 को मनाया जा रहा है। आइए जानते हैं शिव-पार्वती विवाह की रहस्यमयी कथा, पूजा के शुभ मुहूर्त और इस दिन के प्रमुख महत्व को।
शिव-पार्वती विवाह की रहस्यमयी कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सतयुग में देवी सती के आत्मदाह के बाद भगवान शिव गहरे शोक में डूब गए थे। उनका यह विरक्ति भरा जीवन राक्षस ताड़कासुर के लिए एक अवसर बन गया। ताड़कासुर को यह विश्वास था कि भगवान शिव कभी गृहस्थ जीवन नहीं अपनाएंगे, जिससे वह अमर हो सकता है।
अमरत्व प्राप्त करने के लिए ताड़कासुर ने भगवान ब्रह्मा की घोर तपस्या की। उसकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। ताड़कासुर ने वरदान स्वरूप यह मांग रखी कि उसकी मृत्यु केवल भगवान शिव के पुत्र के हाथों ही हो। ब्रह्मा जी ने “तथास्तु” कहकर उसे यह वरदान दे दिया।
देवी पार्वती की कठोर तपस्या
इसी काल में, हिमालय पर राजा हिमवान और रानी मैना अपनी पुत्री पार्वती के साथ निवास कर रहे थे। देवी पार्वती बचपन से ही भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और प्रेम रखती थीं। उन्होंने मन ही मन भगवान शिव को ही अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया था। लेकिन शिव जी कैलाश पर्वत पर गहन ध्यान में लीन थे।
भगवान शिव को ध्यान से जगाने के लिए सभी देवी-देवताओं ने कामदेव को उनके पास भेजा। कामदेव ने जब शिव जी पर प्रेम बाण चलाया, तो भगवान शिव की तीसरी आँख खुल गई और उन्होंने अपने प्रचंड क्रोध से कामदेव को भस्म कर दिया।
जब सभी प्रयास असफल हो गए, तब देवी पार्वती ने कठोर तपस्या करने का संकल्प लिया। वर्षों तक कठोर तपस्या करने के बाद, उनकी श्रद्धा और भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव स्वयं उनके सामने प्रकट हुए।
शिव-पार्वती का विवाह और ताड़कासुर का अंत
महादेव ने देवी पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें विवाह का प्रस्ताव दिया, जिसे देवी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। आज ही के दिन, फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि पर, भगवान शिव और देवी पार्वती का पवित्र विवाह संपन्न हुआ था, और तभी से इस दिन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाने लगा।
शिव-पार्वती के विवाह के पश्चात पुत्र कार्तिकेय का जन्म हुआ, जिसने ताड़कासुर का वध किया और पृथ्वी को उसके आतंक से मुक्त कराया।
महाशिवरात्रि का महत्व और पूजा विधि
महाशिवरात्रि केवल एक पर्व ही नहीं, बल्कि आस्था, भक्ति और आध्यात्मिक शक्ति का संगम है। इस दिन शिवलिंग का जलाभिषेक, रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय जाप और रात्रि जागरण करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
महाशिवरात्रि 2025 के पूजा के शुभ मुहूर्त
सूर्योदय: 26 फरवरी को सुबह 6:54 और 27 फरवरी को सुबह 6:53 मिनट पर
ब्रह्म मुहूर्त: 26 फरवरी को प्रात: 05:17 से 06:05 तक और 27 फरवरी को सुबह 05:16 से 06:04 तक
निशिता काल: 27 फरवरी को सुबह 12:09 से 12:59 तक
रात्रि प्रथम प्रहर की पूजा: 26 फरवरी को 06:19 से 09:26 तक
रात्रि द्वितीय प्रहर की पूजा: 26 फरवरी को 09:26 से 27 फरवरी को 12:34 तक
रात्रि तृतीय प्रहर की पूजा: 27 फरवरी को 12:34 से 03:41 तक
रात्रि चतुर्थ प्रहर की पूजा: 27 फरवरी को 03:41 से 06:48 तक