आज के दौर में जब सफलता को अक्सर सुविधाओं और संसाधनों से जोड़ा जाता है, श्रीकांत बोल्ला (Srikanth Bolla) ने यह साबित कर दिया कि सच्ची लगन और मेहनत से किसी भी बाधा को पार किया जा सकता है। जन्म से नेत्रहीन श्रीकांत को बचपन से ही समाज की चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। आज वे 50 करोड़ की कंपनी “Bollant Industries” के सीईओ हैं और दुनिया के सामने एक मिसाल बनकर उभरे हैं।
संघर्ष की शुरुआत
श्रीकांत बोल्ला का जन्म 7 जुलाई 1992 को तेलंगाना के मछलीपट्टनम में एक किसान परिवार में हुआ था। जन्म से अंधे होने के कारण उन्हें कई बार भेदभाव का सामना करना पड़ा। जब वे बड़े हुए, तो विज्ञान (Science) पढ़ने की उनकी इच्छा को ठुकरा दिया गया क्योंकि उन्हें बताया गया कि दृष्टिहीन छात्र केवल कला (Arts) विषय ही ले सकते हैं।
लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और हाईकोर्ट में केस जीतकर *12वीं कक्षा में विज्ञान की पढ़ाई पूरी की। उन्होंने बोर्ड परीक्षा में *98% अंक हासिल किए, लेकिन इसके बावजूद उन्हें आईआईटी (IIT) में दाखिला नहीं मिला।
MIT में दाखिला और शिक्षा
आईआईटी में प्रवेश से वंचित होने के बावजूद, श्रीकांत ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और अमेरिका के मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) में दाखिला लिया। वे MIT में प्रवेश पाने वाले पहले दृष्टिहीन भारतीय छात्र बने।
50 करोड़ की कंपनी की स्थापना
श्रीकांत बोल्ला ने अपने सपनों को हकीकत में बदलते हुए 2012 में “Bollant Industries” की स्थापना की। यह कंपनी बायोडिग्रेडेबल और इको-फ्रेंडली पैकेजिंग उत्पाद बनाती है, जिससे दिव्यांग लोगों को रोजगार के अवसर भी मिलते हैं।
आज उनकी कंपनी की वैल्यूएशन 50 करोड़ रुपये से अधिक है और वे हजारों लोगों को रोजगार प्रदान कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री और उद्योगपतियों से सराहना
उनकी इस उपलब्धि को देखते हुए कई बड़े उद्योगपतियों और नेताओं ने उनकी तारीफ की। भारतीय उद्योगपति रतन टाटा ने भी श्रीकांत बोल्ला के संघर्ष और सफलता की सराहना की और उनकी कंपनी में निवेश किया।
प्रेरणा की मिसाल
श्रीकांत बोल्ला का जीवन हमें यह सिखाता है कि यदि आपके पास संकल्प और मेहनत करने की इच्छा है, तो कोई भी बाधा आपके लक्ष्य को नहीं रोक सकती। नेत्रहीन होते हुए भी उन्होंने दुनिया को दिखाया कि आत्मविश्वास और दृढ़ निश्चय के साथ सफलता हासिल की जा सकती है।
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