कल्पना कीजिए कि आप बिटकॉइन से संपत्ति बना रहे हैं, वह भी बिना उसे सीधे अपने पास रखे और बिना हैकिंग या कस्टडी की चिंता किए। यही सुविधा क्रिप्टो एसेट एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (ETF) प्रदान करते हैं। ये ETF बिटकॉइन, एथेरियम और अन्य डिजिटल एसेट बास्केट को ट्रैक करते हैं और प्रतिष्ठित स्टॉक एक्सचेंजों पर ट्रेड होते हैं। इसका मतलब है कि निवेशकों को एक सुरक्षित, पारदर्शी और तरल निवेश विकल्प मिलता है, जहां उन्हें डिजिटल संपत्तियों तक पहुंच तो मिलती है, लेकिन बिना किसी तकनीकी या सुरक्षा जोखिम के। भारत में ETF की शुरुआत 2002 में हुई थी, और 2021 तक इसका एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) ₹3.16 लाख करोड़ तक पहुंच चुका था। वहीं, वैश्विक स्तर पर क्रिप्टो ETF ने और भी तेज़ी से सफलता हासिल की है, और जनवरी 2024 में मंजूरी मिलने के बाद से बिटकॉइन ETF ने ₹8.6 लाख करोड़ से अधिक की संपत्ति जुटा ली है।
क्रिप्टो ETF ने दुनिया भर में निवेशकों को डिजिटल संपत्तियों तक पहुँचने का एक नया तरीका दिया है। अमेरिकी SEC ने जनवरी 2024 में 11 स्पॉट बिटकॉइन ETF को मंजूरी दी है। वहीं ब्लैकरॉक का iShares बिटकॉइन ट्रस्ट बहुत कम समय में उसके अपने गोल्ड ETF से आगे निकल गया है। यूरोप और कनाडा में भी क्रिप्टो ETF को अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। PwC-AIMA की रिपोर्ट के अनुसार, 47% पारंपरिक हेज फंड अब डिजिटल संपत्तियों में निवेश कर रहे हैं। इसी के साथ HSBC, गोल्डमैन सैक्स और ब्लैकरॉक जैसी प्रमुख वित्तीय कंपनियां भी क्रिप्टो कस्टडी और ट्रेडिंग इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर रही हैं। हाल ही में EY-Parthenon और Coinbase द्वारा प्रकाशित सर्वेक्षण रिपोर्ट ने बताया है कि 83% संस्थागत निवेशक इस वर्ष क्रिप्टो में अपना निवेश बढ़ाने की योजना बना रहे हैं, और 59% निवेशक 2025 तक अपनी कुल संपत्ति (AUM) का 5% से अधिक क्रिप्टो में लगाने की सोच रहे हैं। इससे साफ है कि क्रिप्टो अब सिर्फ एक सीमित संपत्ति वर्ग से हटके मुख्यधारा का हिस्सा बनता जा रहा है।
लेकिन जब दुनिया भर में क्रिप्टो ETF को अपनाया जा रहा है, भारत अब भी इससे दूरी बनाए हुए है। नियामकीय दिशानिर्देशों की कमी के चलते SEBI ने अब तक म्यूचुअल फंड कंपनियों को क्रिप्टो में निवेश से बचने की सलाह दी है। जिससे भारतीय निवेशकों के पास क्रिप्टो में निवेश करने का कोई विनियमित (regulated) माध्यम नहीं बचा है और उन्हें अनौपचारिक (unregulated) या विदेशी विकल्पों की ओर रुख करना पड़ रहा है। यदि भारत में क्रिप्टो ETF की अनुमति नहीं दी जाती है, तो निवेशक सुरक्षा और नवाचार दोनों प्रभावित होंगे। दूसरी ओर, वैश्विक एसेट मैनेजर्स इस नए अवसर का लाभ उठा रहे हैं, जिससे भारतीय कंपनियां प्रतिस्पर्धा में पीछे रह जाएंगी।
क्रिप्टो ETF सीधे क्रिप्टो खरीदने की तुलना में अधिक सुरक्षित विकल्प प्रदान करते हैं। अगर कोई व्यक्ति खुद बिटकॉइन या अन्य डिजिटल संपत्तियां खरीदता है, तो उसे हैकिंग, एक्सचेंज के अस्थिर होने, और सुरक्षित कस्टडी जैसी कई चिंताओं का सामना करना पड़ता है। लेकिन ETF में निवेश करने पर, इनकी कस्टडी ब्लैकरॉक जैसी संस्थागत कंपनियां संभालती हैं, जो उच्च स्तर की सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं।
भारत के लिए जरूरी नहीं कि वह सीधे स्पॉट क्रिप्टो ETF से शुरुआत करे। वह पहले बिटकॉइन फ्यूचर्स ETF, वैश्विक क्रिप्टो कंपनियों से जुड़े ETF, या विदेशी क्रिप्टो ETF को अपनाने पर विचार कर सकता है—जो अन्य देशों में पहले से ही चलन में हैं।
भारत में क्रिप्टो ETF को मंजूरी देने से तीन बड़े फायदे होंगे। पहला, निवेशकों की बढ़ती मांग पूरी होगी और उन्हें एक सुरक्षित और विनियमित निवेश विकल्प मिलेगा। दूसरा, भारतीय पूंजी विदेशी बाजारों में जाने से बचेगी, जिससे घरेलू वित्तीय बाजार को लाभ होगा। तीसरा, क्रिप्टो को कर और अनुपालन (compliance) के दायरे में लाया जा सकेगा, जिससे सरकार को राजस्व भी मिलेगा। हालांकि, इसके लिए कुछ जरूरी सुरक्षा उपायों की जरूरत होगी, जैसे सख्त कस्टडी नियम, खुदरा निवेशकों के लिए निवेश की सीमाएं (caps) और पारदर्शी प्रकटीकरण (disclosure) मानदंड।
दुनिया भर में क्रिप्टो ETF मुख्यधारा का हिस्सा बन रहे हैं। अब यह भारत पर निर्भर करता है कि वह अपने निवेशकों को इस अवसर से वंचित रखना चाहता है या सुरक्षित और नियंत्रित वातावरण में क्रिप्टो नवाचार को अपनाकर आगे बढ़ना चाहता है। अगर भारत ने अभी कदम नहीं उठाया, तो यह सिर्फ एक वित्तीय अवसर ही नहीं, बल्कि डिजिटल युग की एक बड़ी क्रांति को भी खो देगा।