भारत की क्रिप्टो उलझन: नज़र में भी, कर के दायरे में भी, फिर भी नियंत्रण से बाहर
नई दिल्ली, 6 अगस्त 2025 वित्त मंत्रालय ने 21 जुलाई, 2025 को लोकसभा में एक सवाल के जवाब में वर्चुअल डिजिटल एसेट्स (VDAs), जिसमें क्रिप्टो एसेट्स भी शामिल हैं, से...

नई दिल्ली, 6 अगस्त 2025
वित्त मंत्रालय ने 21 जुलाई, 2025 को लोकसभा में एक सवाल के जवाब में वर्चुअल डिजिटल एसेट्स (VDAs), जिसमें क्रिप्टो एसेट्स भी शामिल हैं, से जुड़ी आय पर टैक्स लगाए जाने को लेकर जानकारी साझा की। यह जवाब सरकार की क्रिप्टो इनकम को टैक्स दायरे में लाने की कोशिशों की एक दुर्लभ झलक देता है। मंत्रालय ने बताया कि वित्त वर्ष 2022–23 में VDA आय से ₹269.09 करोड़ और 2023–24 में ₹437.43 करोड़ का कर राजस्व प्राप्त हुआ। हालांकि चालू वित्त वर्ष के आंकड़े अभी आना बाकी हैं, इन आंकड़ों से इतना ज़रूर साफ है कि टैक्स संग्रहण में बढ़ोतरी हुई है।
लेकिन साथ ही यह भी स्पष्ट है कि ये संख्याएं भारत के विशाल और तेज़ी से बढ़ते क्रिप्टो इकोसिस्टम की असल कमाई का केवल एक अंश भर हैं। कई ब्लॉकचेन विश्लेषण कंपनियों ने भारत को दुनिया में क्रिप्टो अपनाने वाला सबसे बड़ा देश बताया है। इसका एक मतलब यह भी है कि डिजिटल इनोवेशन की रफ्तार और उसे रेगुलेट करने की सरकारी प्रणाली के बीच का फासला और चौड़ा होता जा रहा है। इसी हफ्ते खबरें आई थीं कि आयकर विभाग ने हज़ारों लोगों को नोटिस भेजे हैं क्योंकि उन्होंने अपनी क्रिप्टो इनकम पर टैक्स सही ढंग से नहीं चुकाया।
हालांकि बजट 2022 में आयकर अधिनियम की धारा 115BBH और 194S के तहत VDA से आय पर टैक्स और TDS का प्रावधान किया गया था, लेकिन अब तक यह नहीं बताया गया है कि आय की अंडर-रिपोर्टिंग के चलते सरकार को कितने टैक्स राजस्व का नुकसान हो सकता है। इस तरह का कोई अनुमान न होना यह दर्शाता है कि सरकार के पास अभी इस क्षेत्र को समझने और मापने के लिए पूरी प्रणाली विकसित नहीं हुई है। फिलहाल सरकार कुछ घरेलू एक्सचेंजों से मिलने वाली जानकारी पर निर्भर है ताकि घोषित इनकम और VDA लेनदेन के बीच का अंतर पकड़ा जा सके।
CBDT द्वारा चलाए जा रहे “नज अभियान” (Nudge Campaign), प्रोजेक्ट इनसाइट और NMS जैसे प्रयासों के ज़रिए टैक्सपेयर्स को गलतियों के बाद रिटर्न संशोधित करने को प्रेरित किया जा रहा है। लेकिन यह पूरा फ्रेमवर्क रिएक्टिव है—यानी गड़बड़ी पहले होती है, कार्रवाई बाद में।
कुछ जवाबों में सरकार ने यह भी माना कि अभी तक कोई ऐसा केंद्रीकृत सिस्टम नहीं बना है जो वर्चुअल एसेट सर्विस प्रोवाइडर्स (VASPs) द्वारा की गई TDS फाइलिंग को व्यक्तिगत टैक्स रिटर्न से जोड़ सके। यह कमी न सिर्फ निगरानी को कमजोर बनाती है बल्कि टैक्स प्रावधानों की रोकथाम क्षमता को भी कमज़ोर कर देती है।
यानी भारत के पास VDA लेनदेन की जानकारी तो है, लेकिन उसे नियंत्रित करने की ठोस प्रणाली का अभी भी अभाव है। इस बीच बड़ी संख्या में भारतीय यूज़र उन विदेशी क्रिप्टो प्लेटफॉर्म्स पर लेनदेन कर रहे हैं जो भारतीय कानून के दायरे से बाहर हैं। ये प्लेटफॉर्म अक्सर INR डिपॉज़िट की सुविधा P2P नेटवर्क के ज़रिए देते हैं और बिना KYC के ट्रेडिंग की अनुमति देते हैं, जिससे TDS, मनी लॉन्ड्रिंग, और इन्वेस्टर प्रोटेक्शन जैसे ज़रूरी कानूनों को लागू करना मुश्किल होता है।
जोख़िम सिर्फ क्रिप्टो इन्वेस्टमेंट तक सीमित नहीं है। 30 जुलाई 2025 को मनीकंट्रोल की एक रिपोर्ट में बताया गया कि अब कुछ विदेशी ऑनलाइन गेमिंग कंपनियां क्रिप्टो का इस्तेमाल कर भारत में टैक्स चोरी और मनी लॉन्ड्रिंग कर रही हैं। ये कंपनियां भारी रक़म को ऐसे वॉलेट्स और एक्सचेंजों के ज़रिए भेज रही हैं, जिनका पता लगाना कठिन है। टैक्स अधिकारियों के मुताबिक, ऐसा तरीका अब आम होता जा रहा है। इससे यह साफ हो गया है कि क्रिप्टो इन्फ्रास्ट्रक्चर का उपयोग सिर्फ पूंजीगत लाभ पर टैक्स बचाने के लिए नहीं बल्कि गेमिंग और सट्टेबाज़ी जैसे क्षेत्रों में अनियमित क्रॉस-बॉर्डर ट्रांज़ैक्शन के लिए भी किया जा रहा है—जहां न केवल दांव बड़ा है, बल्कि सरकारी निगरानी बेहद सीमित है।
दिल्ली की एक थिंक टैंक पहले ही अनुमान लगा चुकी है कि सरकार अब तक ₹6,000 करोड़ के टैक्स रेवेन्यू का नुकसान झेल चुकी है, और अगर नीति में बदलाव नहीं हुआ तो आने वाले पांच वर्षों में ₹10,700 करोड़ का नुकसान और हो सकता है।
भारत तब ही VDA गतिविधियों पर प्रभावी नियंत्रण पा सकेगा, जब विदेशी प्लेटफॉर्म्स को भारतीय कानूनों के अधीन लाने के लिए एक मजबूत लाइसेंसिंग सिस्टम तैयार किया जाए। सिर्फ टैक्सेशन और निगरानी की प्रणाली से यह असंतुलन दूर नहीं होगा। सरकार को ज़रूरत है एक ठोस विधिक ढांचे की जो क्रिप्टो एक्सचेंज, वॉलेट, स्टेबलकॉइन जारीकर्ता और ऐसे सभी मध्यस्थों को कवर करे, जो भारत में काम कर रहे हैं या भारतीय यूज़र्स को टारगेट कर रहे हैं।
इस ढांचे का उद्देश्य होगा कि राज्य की निगरानी में एक आधारभूत कंप्लायंस प्रणाली बने। इसमें भारतीय यूज़र्स को सेवा दे रहे VDA प्लेटफॉर्म्स का अनिवार्य पंजीकरण और लाइसेंसिंग शामिल होना चाहिए। टैक्स रिपोर्टिंग के लिए रीयल टाइम API की व्यवस्था होनी चाहिए। मनी लॉन्ड्रिंग और आतंक वित्तपोषण की जांच के लिए FIU-IND के साथ रिपोर्टिंग सिस्टम की आवश्यकता है। क्रिप्टो एसेट्स की कानूनी परिभाषा की स्पष्टता भी ज़रूरी है, और साथ ही ऐसा दिशानिर्देश होना चाहिए जो निवेशकों को सुरक्षित तरीके से क्रिप्टो में निवेश की अनुमति दे।एक बार यह कानूनी ढांचा बन गया, तो सरकार VDA निगरानी को “घटना के बाद की प्रतिक्रिया” से “लगातार पर्यवेक्षण” में बदल सकती है।
यह सराहनीय है कि सरकार टैक्स अधिकारियों को ब्लॉकचेन फॉरेंसिक्स और डेटा एनालिटिक्स की ट्रेनिंग NFSU जैसे संस्थानों के सहयोग से दे रही है। लेकिन यह ज़रूरी है कि इन पहलों के साथ-साथ ऐसा कानूनी ढांचा भी बने जो टैक्स चोरी की गुंजाइश को कम कर सके।
अगर भारत अपने नागरिकों और राजस्व दोनों को सुरक्षित रखना चाहता है, तो उसे अब निगरानी से आगे जाकर सक्रिय शासन की ओर बढ़ना होगा। टैक्सेशन इस पूरे पहेली का सिर्फ एक हिस्सा है—वास्तविक मजबूती तो रेगुलेशन से ही आती है।
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