क्रिप्टो बनाम SDR: क्या डिजिटल परिसंपत्तियां बन सकती हैं भविष्य का वैश्विक आरक्षित साधन?

नई दिल्ली, 11 अगस्त 2025 तेज़ी से बदलते वैश्विक वित्तीय परिदृश्य में एक दिलचस्प तस्वीर उभर रही है—एक ओर क्रिप्टो परिसंपत्तियों का बढ़ता प्रभाव, और दूसरी ओर पारंपरिक आरक्षित साधन...

JKA Bureau | Published: August 11, 2025 19:18 IST, Updated: August 11, 2025 19:18 IST
क्रिप्टो बनाम SDR: क्या डिजिटल परिसंपत्तियां बन सकती हैं भविष्य का वैश्विक आरक्षित साधन?

नई दिल्ली, 11 अगस्त 2025

तेज़ी से बदलते वैश्विक वित्तीय परिदृश्य में एक दिलचस्प तस्वीर उभर रही है—एक ओर क्रिप्टो परिसंपत्तियों का बढ़ता प्रभाव, और दूसरी ओर पारंपरिक आरक्षित साधन जैसे स्पेशल ड्रॉइंग राइट्स (SDRs), जिन्हें अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) जारी करता है। हाल ही में IMF द्वारा क्रिप्टो परिसंपत्तियों को आधिकारिक मान्यता दिए जाने के बाद यह बहस तेज़ हो गई है कि क्या डिजिटल परिसंपत्तियां ऐसे गुण रखती हैं जो उन्हें एसडीआर से अधिक प्रभावी अंतरराष्ट्रीय आरक्षित साधन बना सकें। इसका जवाब खोजने के लिए ज़रूरी है कि हम डिजिटल मुद्राओं के विशिष्ट लाभों को समझें और उन्हें पारंपरिक एसडीआर ढांचे से तौलें।

स्पेशल ड्रॉइंग राइट्स (SDRs), जिन्हें 1969 में स्थापित किया गया था, का उद्देश्य सोना और अमेरिकी डॉलर के साथ अंतरराष्ट्रीय भंडार को बढ़ाना था। एसडीआर एक विशिष्ट साधन हैं, जिनका मूल्य पाँच प्रमुख मुद्राओं—अमेरिकी डॉलर, यूरो, चीनी युआन, जापानी येन और ब्रिटिश पाउंड स्टर्लिंग—के मिश्रण से तय होता है IMF सदस्य देश इनका इस्तेमाल मुद्रा स्थिर रखने, आवश्यक आयात के वित्तपोषण और वित्तीय संकट से निपटने के लिए करते हैं। उदाहरण के तौर पर, अर्जेंटीना ने IMF का कर्ज चुकाने के लिए एसडीआर का उपयोग किया, जिससे उसका राजकोषीय बोझ कम हुआ और भंडार सुरक्षित रहे, जबकि इक्वाडोर ने इन्हें सरकारी खर्च और भंडार बढ़ाने में लगाया। हालांकि, इनका इस्तेमाल केवल IMF के सदस्य देशों और चुनिंदा संस्थाओं तक सीमित है, जिससे इनकी पहुंच और वितरण क्षमता सीमित रह जाती है।

इसके विपरीत, क्रिप्टो परिसंपत्तियां पहुंच, पारदर्शिता और दक्षता के मामले में एक नई क्रांति पेश करती हैं। IMF ने हाल ही में इन्हें अपने बैलेंस ऑफ पेमेंट्स मैनुअल (BPM7) में शामिल किया है—भले ही अभी यह केवल सांख्यिकीय उद्देश्यों के लिए हो, लेकिन यह वैश्विक वित्तीय तंत्र द्वारा क्रिप्टो अर्थव्यवस्था की गंभीर मान्यता का संकेत है।

क्रिप्टो बनाम SDR: क्या डिजिटल परिसंपत्तियां बन सकती हैं भविष्य का वैश्विक आरक्षित साधन?

क्रिप्टो परिसंपत्तियों का सबसे बड़ा लाभ उनका विकेंद्रीकृत और पारदर्शी ढांचा है। जहां एसडीआर IMF के केंद्रीकृत नियंत्रण में रहते हैं और सदस्य देशों की राजनीतिक व आर्थिक स्थिरता पर निर्भर होते हैं, वहीं क्रिप्टो ब्लॉकचेन नेटवर्क पर चलते हैं—जो सार्वजनिक, अपरिवर्तनीय और सभी के लिए खुले होते हैं। यह संरचना हेरफेर के जोखिम को घटाती है और भरोसा बढ़ाती है। साथ ही, चूंकि क्रिप्टो किसी एक देश की मौद्रिक नीति से बंधे नहीं होते, वे एसडीआर की तुलना में अधिक राजनीतिक रूप से तटस्थ विकल्प प्रदान करते हैं।

तकनीकी लचीलेपन और वित्तीय समावेशन में भी क्रिप्टो आगे हैं। स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट प्लेटफ़ॉर्म जैसे एथेरियम स्वचालित, कम लागत और सीमा-पार लेनदेन संभव बनाते हैं—जो एसडीआर में संभव नहीं है। इससे लेनदेन का समय और जटिलता घटती है और वैश्विक वित्तीय संपर्क अधिक सुचारू होते हैं। जहां एसडीआर केवल सरकारों और चुनिंदा संस्थानों तक सीमित हैं, वहीं क्रिप्टो हर व्यक्ति, व्यवसाय और पिछड़े क्षेत्रों तक पहुंच सकते हैं। विकासशील देशों के लिए यह वित्तीय मजबूती और प्रमुख वैश्विक मुद्राओं पर निर्भरता कम करने का साधन बन सकता है।

हालांकि, क्रिप्टो परिसंपत्तियां चुनौतियों से मुक्त नहीं हैं—नियामकीय स्पष्टता, कीमतों में अस्थिरता और संस्थागत स्वीकृति जैसी बाधाएं बनी हुई हैं। एसडीआर अपेक्षाकृत स्थिर हैं, ब्याज देते हैं और कई मुद्राओं पर आधारित होने से जोखिम कम रखते हैं। इसके विपरीत, क्रिप्टो में उतार-चढ़ाव ज़्यादा है, लेकिन स्टेबलकॉइन तकनीक—जो क्रिप्टो को पारंपरिक मुद्राओं या वस्तुओं से जोड़ती है—इस अस्थिरता को घटाने और भरोसा बढ़ाने में मदद कर रही है।

इन सभी पहलुओं को देखते हुए, क्रिप्टो परिसंपत्तियां न केवल एसडीआर का पूरक बन सकती हैं बल्कि कई मामलों में बेहतर विकल्प भी साबित हो सकती हैं। विकेंद्रीकरण, पारदर्शिता, तकनीकी लचीलापन, समावेशन और दक्षता जैसे गुण इन्हें वैश्विक वित्तीय ढांचे में अलग पहचान देते हैं। यही कारण है कि अमेरिका, यूरोपीय संघ के देश और जापान जैसे कई G20 सदस्य स्पष्ट नियम बनाकर और नवाचार को प्रोत्साहित करके डिजिटल मुद्राओं को तेजी से अपना रहे हैं। इसके विपरीत, भारत की सतर्क और बिखरी हुई नीतियों ने उसे पीछे कर दिया है। जबकि भारत के पास तेजी से बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था और वेब3 में नेतृत्व की तकनीकी क्षमता है, नियामकीय स्पष्टता में देरी उसकी वैश्विक प्रतिस्पर्धा को कमजोर कर सकती है। अंतरराष्ट्रीय आरक्षित परिसंपत्तियों और डिजिटल वित्त के भविष्य में अपनी भूमिका सुनिश्चित करने के लिए भारत को तुरंत प्रगतिशील वैश्विक मानकों के अनुरूप कदम बढ़ाने होंगे और संतुलित, दूरदर्शी नियामकीय ढांचा तैयार करना होगा।

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