क्रिप्टो पर कानूनी शून्य: अदालतों ने सरकार को दी सख्त चेतावनी
सुप्रीम कोर्ट बोला—टैक्स वसूली हो रही है तो नियमन से क्यों बच रही है सरकार? नई दिल्ली, 18 अगस्त 2025 भारतीय अदालतें बार-बार सरकार को आगाह कर रही हैं कि...

सुप्रीम कोर्ट बोला—टैक्स वसूली हो रही है तो नियमन से क्यों बच रही है सरकार?
नई दिल्ली, 18 अगस्त 2025
भारतीय अदालतें बार-बार सरकार को आगाह कर रही हैं कि क्रिप्टो संपत्तियों के लिए कोई स्पष्ट कानून न होना गंभीर चिंता का विषय है। 2020 के Internet and Mobile Association of India मामले से लेकर हाल की सुनवाइयों तक, न्यायपालिका ने साफ किया है कि यह क्षेत्र कानूनी धुंधलके में काम कर रहा है और इसका असर नागरिकों व एजेंसियों दोनों पर पड़ रहा है।
सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में केंद्र की दोहरी नीति पर सवाल उठाए। अदालत ने कहा कि जब बिटकॉइन जैसी मुद्राओं पर 30% कर लिया जा रहा है, तो नियमन क्यों नहीं? न्यायालय ने चेताया कि अनियंत्रित क्रिप्टो एक “समानांतर अर्थव्यवस्था” खड़ी कर सकता है, जो वित्तीय स्थिरता को डगमगा देगा।
बहस की शुरुआत 2020 से हुई, जब सुप्रीम कोर्ट ने आरबीआई द्वारा लगाए गए पूर्ण बैंकिंग प्रतिबंध को रद्द कर दिया। अदालत ने माना कि आरबीआई ने अपने कदम को पर्याप्त आँकड़ों से सही नहीं ठहराया, हालांकि क्रिप्टो के जोखिमों को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता। इस फैसले में एक अहम संदेश छिपा था — पूर्ण प्रतिबंध असंगत हो सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इस क्षेत्र को बिना किसी निगरानी के छोड़ दिया जाए।
2023 में आए कुछ मामूली दिखने वाले मामलों ने भी अदालत की गंभीर चिंता को उजागर किया। ओडिशा से जुड़े एक ज़मानत मामले में न्यायाधीशों ने टिप्पणी की कि क्रिप्टो से जुड़े मुक़दमे तेजी से बढ़ रहे हैं और कानूनी ढांचा इनसे निपटने में पिछड़ रहा है। अदालत ने दोहराया कि क्रिप्टो ट्रेडिंग अवैध नहीं है, लेकिन नीति शून्यता से न्याय व्यवस्था पर बोझ बढ़ता जा रहा है।
हाल के समय में धनशोधन और कर चोरी से जुड़े मामलों में अदालतों ने सरकार से सीधा सवाल किया है— “आख़िर अरबों डॉलर का यह इकोसिस्टम कब तक बिना नियमन के चल सकता है?” कई मौकों पर अदालत ने जाँच एजेंसियों से क्रिप्टो वॉलेट्स और लेन-देन ट्रैकिंग तकनीकों का ब्यौरा भी माँगा है।
अदालत का रुख साफ है: क्रिप्टो केवल तकनीकी नवाचार नहीं, बल्कि एक उभरती वित्तीय संरचना है, जिसका संबंध आपराधिक कानून, कराधान, उपभोक्ता अधिकार और अंतरराष्ट्रीय नियमों से भी जुड़ता है। यदि सरकार ने जल्द कोई ठोस कानून नहीं बनाया तो न्यायपालिका और प्रवर्तन एजेंसियों को पुराने औज़ारों से इस आधुनिक वैश्विक संपत्ति वर्ग को सँभालना पड़ेगा, जो लगभग असंभव है।
सर्वोच्च न्यायालय ने मौजूदा ढाँचे को अप्रासंगिक बताते हुए सरकार से तुरंत एक समकालीन और स्पष्ट नियामक व्यवस्था बनाने की अपील की है।
न्यायपालिका का संदेश साफ है— अदालतें नीति नहीं बना रहीं, लेकिन सरकार से इसकी मांग ज़रूर कर रही हैं। संकेत यह है कि जितनी देर भारत करेगा, कानून उतना ही धुंधला होता जाएगा और भविष्य में इसकी कीमत कहीं अधिक चुकानी पड़ेगी।
अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्रिप्टो जैसे क्षेत्र से निपटने के लिए भारतीय राज्य कब तक केवल न्यायिक “जुगाड़” और अस्थायी कदमों पर निर्भर रहेगा, जबकि यह क्षेत्र पहले ही वैश्विक वित्तीय व्यवस्था को बदल चुका है।
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