चंबल में अवैध रेत खनन उजागर करने वाले पत्रकारों को सुप्रीम कोर्ट से मिली अंतरिम सुरक्षा
नई दिल्ली, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने मध्य प्रदेश के दो पत्रकारों, शशिकांत जाटव और अमरकांत सिंह चौहान को गिरफ्तारी से बचाने के लिए अंतरिम राहत प्रदान की है। यह...

चंबल में अवैध रेत खनन उजागर करने वाले पत्रकारों को सुप्रीम कोर्ट से मिली अंतरिम सुरक्षा
नई दिल्ली, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने मध्य प्रदेश के दो पत्रकारों, शशिकांत जाटव और अमरकांत सिंह चौहान को गिरफ्तारी से बचाने के लिए अंतरिम राहत प्रदान की है। यह राहत उन्हें चंबल क्षेत्र में हो रहे अवैध रेत खनन को उजागर करने के बाद मिलने वाली धमकियों और उत्पीड़न के कारण दी गई है।
भिंड जिले में काम कर रहे इन दोनों पत्रकारों ने अपनी याचिका में बताया कि स्थानीय पुलिस अधिकारियों द्वारा उन्हें धमकाया गया और शारीरिक प्रताड़ना भी सहनी पड़ी। उनके इन आरोपों की पृष्ठभूमि में चंबल नदी के संवेदनशील पर्यावरणीय क्षेत्र में बिना अनुमति के चल रहे रेत खनन की उनकी लगातार रिपोर्टिंग है।
अमरकांत सिंह चौहान, जो ‘स्वराज एक्सप्रेस’ के ब्यूरो प्रमुख हैं, ने बताया कि 1 मई को पुलिस अधीक्षक ने बातचीत का बहाना बनाकर उन्हें बुलाया और वहां उनकी पिटाई की गई। उनके कपड़े उतारने और पिटाई करने जैसे कृत्यों का आरोप भी लगाया गया, जो अन्य पत्रकारों की मौजूदगी में हुआ। इसके कुछ दिन बाद 4 मई को चौहान और स्वतंत्र पत्रकार शशिकांत जाटव को एक बिचौलिए के जरिए रेलवे स्टेशन से बहला-फुसलाकर पुलिस अधीक्षक के आवास पर ले जाया गया, जहां उन पर शिकायत वापस लेने का दबाव बनाया गया।
अपनी सुरक्षा की चिंता से 5 मई को दोनों पत्रकार दिल्ली चले गए और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया तथा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के समक्ष शिकायत दर्ज कराई। उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया, जिसने कुछ अंतरिम सुरक्षा दी, लेकिन अधिकार क्षेत्र के कारण मामला मध्य प्रदेश हाईकोर्ट भेजा गया। चूंकि मामला दोनों राज्यों से जुड़ा था और संवेदनशील था, इसलिए दोनों पत्रकारों ने सीधे सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर संज्ञान लेते हुए मध्य प्रदेश और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किए और गिरफ्तारी पर रोक लगा दी।
मध्य प्रदेश सरकार ने जवाब में इन आरोपों को अस्वीकार करते हुए पत्रकारों पर गंभीर आरोप लगाए हैं, जबकि पत्रकार इसे दमन का प्रयास बताते हैं।
दोनों पत्रकारों ने साझा बयान में कहा कि यह मामला सिर्फ उनका निजी संघर्ष नहीं, बल्कि हर उस पत्रकार के अधिकार का मुद्दा है, जो बिना भय के जनहित की खबरें प्रकाशित करना चाहता है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की राहत का स्वागत किया और न्यायपालिका पर भरोसा जताया।
वरिष्ठ पत्रकार मनोज शर्मा ने इस निर्णय को पत्रकारिता की स्वतंत्रता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया और कहा कि यह स्पष्ट करता है कि अवैध गतिविधियों के खिलाफ आवाज उठाने वालों के लिए क्षेत्र कितने संकुचित हो रहे हैं।
मामला अब जांच के अधीन है, और दोनों पत्रकार कानूनी प्रक्रिया में पूरी तरह सहयोग करने के इच्छुक हैं।