‘Saiyaara’ रिव्यू: एहसासों से बुनी एक प्रेम कहानी, जो दिल नहीं… रूह को छू जाती है
‘Saiyaara’—एक ऐसी प्रेम कहानी, जो अल्फ़ाज़ से नहीं, खामोशियों से बोलती है

नई दिल्ली, 18 जुलाई 2025
रेटिंग: ⭐⭐⭐⭐☆ (4/5)
बॉलीवुड में बहुत कम फिल्में होती हैं जो महज एक कहानी नहीं होतीं, बल्कि एक एहसास बन जाती हैं—और ‘Saiyaara’ उन्हीं फिल्मों में शुमार होती है। मोहित सूरी की इस ताज़ा पेशकश में रोमांस, दर्द, संगीत और यादों का वो ताना-बाना बुना गया है जो दर्शकों के दिल में गहरे उतर जाता है।
यशराज बैनर के तले बनी इस फिल्म से अहान पांडे और अनीत पड्डा जैसे दो नए चेहरे इंडस्ट्री में डेब्यू कर रहे हैं, लेकिन इनकी केमिस्ट्री और अदाकारी देखकर कहीं से भी ये नहीं लगता कि ये इनकी पहली फिल्म है।
दो अधूरी ज़िंदगियां, एक मुकम्मल कहानी
फिल्म की कहानी कृष कपूर (अहान) और वाणी (अनीत) के इर्द-गिर्द घूमती है।
कृष, एक संघर्षरत सिंगर है, जिसकी आवाज़ में जादू है, मगर किस्मत अब तक खामोश रही है। वहीं वाणी, एक लेखिका है जो एक टूटे रिश्ते और अधूरी उम्मीदों के साए में जी रही है। दोनों की मुलाकात एक म्यूज़िकल प्रोजेक्ट पर होती है और यहीं से शुरू होती है एक अनकही मोहब्बत की दास्तान।
धीरे-धीरे दोनों एक-दूसरे के जख्मों पर मरहम बन जाते हैं। उनकी बातचीत, उनके लम्हे, उनका साथ—सब कुछ धीरे-धीरे एक गहरी मोहब्बत में बदल जाता है।
जब प्यार की सबसे बड़ी परीक्षा सामने आती है
कहानी तब करवट लेती है जब वाणी को पता चलता है कि वह कम उम्र में अल्जाइमर से जूझ रही है। अब सवाल उठता है कि क्या वाणी की भूलती यादों में कृष का प्यार जिंदा रह पाएगा? या क्या कृष अपनी मोहब्बत को वाणी की स्मृतियों में हमेशा के लिए जज़्ब कर पाएगा?
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अभिनय जो दिल को छू जाए
अहान पांडे अपने पहले ही किरदार में सहजता और संजीदगी से भरपूर परफॉर्मेंस देते हैं। उनके चेहरे की मासूमियत, आंखों में उम्मीद और भावनाओं की गहराई उनके किरदार को सजीव बना देती है।
अनीत पड्डा, एक भावुक किरदार में पूरी तरह ढल जाती हैं। उनकी चुप्पियां, टूटे लम्हों में छुपा दर्द और आंखों में तैरता डर—सब कुछ बड़ी खूबसूरती से पेश किया गया है।
संगीत जो कहानी का दिल बन जाए
फिल्म का म्यूजिक इसकी जान है। अरिजीत सिंह की आवाज़ हर फ्रेम को जादुई बना देती है। गाने सिर्फ मनोरंजन नहीं करते, बल्कि कहानी को आगे बढ़ाते हैं और दृश्यों की भावनात्मक गहराई को कई गुना बढ़ा देते हैं।
निर्देशन और प्रस्तुति
मोहित सूरी ने ‘सैयारा’ को एक कविता की तरह पेश किया है—धीमी रफ्तार में बहती एक गहरी और भावनात्मक यात्रा, जिसमें हर दृश्य एक एहसास की तरह उभरता है। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी, लोकेशन और भावनात्मक दृश्यांकन इसे और भी प्रभावशाली बनाते हैं।
‘सैयारा’ एक फिल्म नहीं, एक सैर है—दिल के सबसे नर्म कोनों तक जाने वाली। यह फिल्म उन प्रेमियों के लिए है जो रिश्तों में सिर्फ साथ नहीं, एहसास तलाशते हैं।
यह कहानी पूछती है—”अगर यादें साथ ना रहें, तो क्या प्यार जिंदा रह सकता है?”
अगर आपका दिल रूमानी कहानियों की धड़कन समझता है, तो ‘सैयारा’ आपके लिए एक ज़रूरी फिल्म है।
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