सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जीआईबी संरक्षण और नवीकरणीय ऊर्जा के बीच संतुलन: एनएसईएफआई

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जीआईबी संरक्षण और नवीकरणीय ऊर्जा के बीच संतुलन: एनएसईएफआई

विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों को मिली मंजूरी, पावर कॉरिडोर को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश

नई दिल्ली: ग्रेट इंडियन बस्टर्ड से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले का एनएसईएफआई ने स्वागत करते हुए इसे विज्ञान-आधारित और व्यावहारिक निर्णय करार दिया है।

एनएसईएफआई ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2024 में गठित विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया है, जिसमें राजस्थान और गुजरात में जीआईबी और लेसर फ्लोरिकन की सुरक्षा के लिए व्यावहारिक और वैज्ञानिक उपाय सुझाए गए हैं। संगठन ने कहा कि वह 2019 से ही इस मामले में तथ्यों और संतुलन पर आधारित दृष्टिकोण का समर्थन करता रहा है।

एनएसईएफआई ने सुप्रीम कोर्ट के साथ-साथ पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, बिजली मंत्रालय, केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण, सेंट्रल ट्रांसमिशन यूटिलिटी ऑफ इंडिया, वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और राजस्थान व गुजरात सरकारों के प्रयासों की सराहना की है।

फैसले में संरक्षण को प्राथमिकता देते हुए इन-सिटू और एक्स-सिटू उपायों को मजबूत करने, जीआईबी के प्राथमिक आवास क्षेत्रों को तर्कसंगत रूप से परिभाषित करने, महत्वपूर्ण बिजली लाइनों के समयबद्ध शमन और पावरलाइन कॉरिडोर के निर्माण का निर्देश दिया गया है। साथ ही, संकटग्रस्त प्रजातियों की सुरक्षा को संवैधानिक और पर्यावरणीय जिम्मेदारी बताया गया है।

एनएसईएफआई ने बताया कि वर्ष 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने जीआईबी क्षेत्रों में ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइनों पर प्रतिबंध लगाया था, लेकिन मार्च 2024 में अदालत ने अपने पहले के निर्देशों में संशोधन करते हुए नौ सदस्यीय समिति गठित की। समिति ने राजस्थान में जीआईबी का प्राथमिक क्षेत्र 14,013 वर्ग किलोमीटर और गुजरात में 740 वर्ग किलोमीटर तय किया है।

समिति ने प्राथमिक क्षेत्रों में पावर कॉरिडोर चिन्हित करने और राजस्थान में डेजर्ट नेशनल पार्क के दक्षिण में 5 किलोमीटर चौड़े कॉरिडोर के विकास की सिफारिश की है। गुजरात में भी दो पावर कॉरिडोर प्रस्तावित किए गए हैं, ताकि पक्षियों से टकराव के जोखिम को कम किया जा सके। बर्ड फ्लाइट डाइवर्टर के उपयोग को लेकर भी वैज्ञानिक अध्ययन की बात कही गई है।

फैसले में निर्देश दिया गया है कि चिन्हित बिजली लाइनों को दो साल के भीतर भूमिगत किया जाए या उनका मार्ग बदला जाए। संशोधित प्राथमिक क्षेत्रों में नई पवन ऊर्जा परियोजनाओं, 2 मेगावाट से अधिक की नई सौर परियोजनाओं और सोलर पार्क के विस्तार पर रोक लगाई गई है। हालांकि, गैर-प्राथमिक क्षेत्रों में साझा मार्गों के माध्यम से ट्रांसमिशन लाइनों के अनुकूलन की अनुमति दी गई है।

एनएसईएफआई ने कहा कि अंतिम फैसले में देरी के कारण पिछले डेढ़ साल से करीब 14 गीगावाट की परियोजनाओं को बिजली अधिनियम, 2003 की धारा 68 के तहत मंजूरी नहीं मिल पाई थी। अब इस फैसले से नियामकीय स्पष्टता आई है, जिससे डेवलपर्स को बेहतर योजना और समयबद्ध क्रियान्वयन में मदद मिलेगी। संगठन के अनुसार, इस निर्णय से लगभग ₹65,000 करोड़ की परियोजनाओं को राहत मिलेगी।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि बड़े रेगिस्तानी क्षेत्रों में ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइनों पर पूर्ण प्रतिबंध तकनीकी रूप से संभव नहीं है और न ही इसके पक्ष में वैज्ञानिक प्रमाण हैं। साथ ही, अदालत ने माना कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार अनिवार्य है और जीवाश्म ईंधन पर अत्यधिक निर्भरता पर्यावरण को और नुकसान पहुंचाएगी।

एनएसईएफआई ने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकार की गई शमन रणनीतियों, विशेष रूप से पावरलाइन कॉरिडोर के निर्माण और स्थान व वोल्टेज-आधारित उपायों को लागू करने में संबंधित प्राधिकरणों को पूरा सहयोग देगा।

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