ग्रामीण बौद्ध धरोहर के संरक्षण एवं विकास हेतु अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने साझा विज़न अपनाया

ग्रामीण बौद्ध धरोहर के संरक्षण एवं विकास हेतु अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने साझा विज़न अपनाया

सम्मेलन में तकनीकी संरक्षण, सामुदायिक सहभागिता और सतत पर्यटन पर विस्तृत चर्चा

नई दिल्ली: डॉ. अम्बेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र, नई दिल्ली में आज ITRHD का ग्रामीण बौद्ध धरोहर संरक्षण सम्मेलन सम्पन्न हुआ। देश-विदेश के विद्वानों और नीति-निर्माताओं ने इसमें भाग लेकर संरक्षण और विकास से जुड़े ठोस सुझाव पेश किए।
सम्मेलन का एक प्रमुख निर्णय नागर्जुनकोंडा में राष्ट्रीय ग्रामीण धरोहर संरक्षण एवं विकास प्रशिक्षण अकादमी की स्थापना का प्रस्ताव है, जिसके लिए आंध्र प्रदेश सरकार ने मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व में अकादमी के लिए पांच एकड़ भूमि आवंटित की है। यह पहल भारत की ग्रामीण बौद्ध धरोहर के क्षमता निर्माण, समन्वित संरक्षण और समुदाय-केंद्रित विकास के लिए समर्पित पहली संस्था के निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

इस अवसर पर ITRHD के अध्यक्ष श्री एस. के. मिश्रा ने कहा कि इस पहल का उद्देश्य कार्यान्वयन के लिए मार्गदर्शक रूपरेखा के रूप में काम करना है और इसके लिए वार्षिक प्रगति समीक्षा जरूरी है ताकि पहलों की जवाबदेही और सतत प्रगति सुनिश्चित की जा सके।

सम्मेलन के अंतिम दिन में अवधारणात्मक समझ से ठोस कार्रवाई की ओर ध्यान केंद्रित किया गया। प्रतिभागियों ने तकनीक-संचालित संरक्षण, समुदाय-आधारित पहल, शैक्षिक जागरूकता, सतत पर्यटन और भारत की ग्रामीण बौद्ध धरोहर की वैश्विक प्रासंगिकता पर गहन चर्चा की, और इन अमूल्य स्थलों के संरक्षण और पुनरुद्धार के व्यावहारिक उपायों को उजागर किया।

डॉ. प्रजापति त्रिवेदी, हार्वर्ड विश्वविद्यालय के वरिष्ठ फेलो ने सफलता की साझा परिभाषा के महत्व पर जोर दिया और कहा कि समन्वित उद्देश्यों के बिना दीर्घकालिक और समन्वित धरोहर परिणाम प्राप्त नहीं किए जा सकते।

प्रस्तावित अकादमी पर टिप्पणी करते हुए, प्रसिद्ध संरक्षण वास्तुकार और विद्वान प्रो. ए. जी. के. मेनन ने ग्रामीण बौद्ध स्थलों के प्रबंधन के लिए संरचित दृष्टिकोण की आवश्यकता बताई। उन्होंने एजेंसियों के बीच समन्वय में मौजूदा अंतराल को उजागर किया और कहा कि धरोहर और विकास को परस्पर पूरक के रूप में समझा जाना चाहिए, और भारत की प्रगति को इसके गांवों के माध्यम से भी मापा जाना चाहिए।

अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभागियों ने भी सम्मेलन की गहन सराहना की। रूस की उरल फेडरल यूनिवर्सिटी की कला इतिहास, संस्कृति अध्ययन और डिजाइन विभाग की डीन डॉ. विक्टोरिया डेमेनोवा ने सम्मेलन को न केवल अद्वितीय रूप से सूचनाप्रद और प्रेरणादायक बताया, बल्कि इसे भारत की ग्रामीण बौद्ध धरोहर संरक्षण के लिए एक वैश्विक आदर्श मॉडल भी करार दिया।

सम्मेलन ने इस बात पर जोर दिया कि ग्रामीण बौद्ध धरोहर केवल सांस्कृतिक विरासत नहीं है, बल्कि यह ग्रामीण समुदायों के लिए आजीविका का साधन और उनकी पहचान को सशक्त बनाने का महत्वपूर्ण अवसर भी है। आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा भूमि आवंटन के साथ अब भारत में ग्रामीण बौद्ध धरोहर के संरक्षण और पुनरुद्धार के लिए एक मजबूत संस्थागत आधार तैयार हो गया है।

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