छोटी भूल से बड़ी मुसीबत: क्यों अल्जाइमर को ‘साइलेंट महामारी’ कहा जा रहा है

छोटी भूल से बड़ी मुसीबत: क्यों अल्जाइमर को ‘साइलेंट महामारी’ कहा जा रहा है

40 लाख से 1.23 करोड़ तक – आने वाले दशकों में कहां पहुंचेगी यह बीमारी?

हर साल 21 सितम्बर को विश्व अल्जाइमर दिवस मनाया जाता है। इस साल की थीम है – “Ask About Dementia”, जिसका मकसद लोगों को इस बीमारी के बारे में जागरूक करना और रोगियों के आत्मविश्वास को मजबूत करना है।

भारत में 60 साल से ज्यादा उम्र के करीब 7–8% बुजुर्ग डिमेंशिया से जूझ रहे हैं। पहले गांव और छोटे शहरों में ऐसे मामलों को गंभीरता से नहीं लिया जाता था, लेकिन अब बेहतर जांच और उम्रदराज आबादी के बढ़ने से तस्वीर साफ होती जा रही है।

डराने वाले हैं आंकड़े

पिछले दो दशकों में न्यूरोलॉजिकल बीमारियों ने स्वास्थ्य सेवाओं पर बड़ा दबाव डाला है। इनमें सबसे आम समस्या अल्जाइमर रोग है।

2021 में दुनिया भर में करीब 5.7 करोड़ लोग डिमेंशिया से पीड़ित थे, जिनमें से 60–70% मामले अल्जाइमर के थे।

भारत में इस समय लगभग 40 लाख लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं।

अनुमान है कि 2030 तक यह संख्या बढ़कर 82 लाख और 2050 तक 1.23 करोड़ तक पहुंच सकती है।

अल्जाइमर क्या है?

यह सिर्फ “बुढ़ापे की सामान्य भूल” नहीं है। अल्जाइमर में दिमाग की कोशिकाएं धीरे-धीरे नष्ट होने लगती हैं क्योंकि दिमाग में अमाइलॉइड और टाऊ प्रोटीन जमा हो जाते हैं। शुरुआत में इंसान छोटी-छोटी बातें भूलने लगता है – जैसे नाम याद न रहना या चीजें कहां रखीं भूल जाना। समय के साथ स्थिति इतनी बिगड़ जाती है कि मरीज अपने परिवार, जगह या रोजमर्रा के काम तक नहीं पहचान पाता और पूरी तरह दूसरों पर निर्भर हो जाता है।

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किन्हें है ज्यादा खतरा?

विशेषज्ञों के मुताबिक –

  • उम्र बढ़ना,
  • बीपी, डायबिटीज़, मोटापा,
  • धूम्रपान और शराब जैसी आदतें,
  • और कुछ मामलों में जेनेटिक कारण –
    अल्जाइमर का जोखिम बढ़ा सकते हैं। शुरुआती संकेत, जिन्हें नजरअंदाज न करें

अहमदाबाद के वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डॉ. अमितेश पटेल कहते हैं – “अल्जाइमर केवल याददाश्त कम करने की बीमारी नहीं है। व्यक्तित्व में बदलाव, बार-बार चिड़चिड़ापन, अवसाद, नींद की समस्या और मूड स्विंग्स भी इसके शुरुआती लक्षण हो सकते हैं।”

अगर परिवार के 50 वर्ष से अधिक उम्र के किसी सदस्य में ऐसे संकेत दिखें तो डॉक्टर से संपर्क करना जरूरी है।

बचाव के उपाय

अल्जाइमर का फिलहाल कोई स्थायी इलाज नहीं है। शुरुआती अवस्था में कुछ दवाएं लक्षणों को धीमा कर सकती हैं। हालांकि, लाइफस्टाइल में बदलाव करके जोखिम को काफी हद तक कम किया जा सकता है:

  • रोजाना 30 मिनट टहलना या हल्का व्यायाम करें।
  • खानपान में फल, सब्जियां, अनाज, दालें और नट्स शामिल करें।
  • बीपी और शुगर पर नियंत्रण रखें, धूम्रपान और शराब से दूर रहें।
  • दिमागी एक्टिविटी जैसे पढ़ना, पज़ल सॉल्व करना या नई चीज़ें सीखना जारी रखें।
  • सामाजिक रूप से जुड़े रहें और लोगों से बातचीत करें।

नतीजा: अल्जाइमर से जूझना आसान नहीं है, लेकिन समय रहते लक्षणों को पहचानकर और स्वस्थ दिनचर्या अपनाकर इसके खतरे को काफी हद तक टाला जा सकता है।

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